1.
इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिये
आपको चेहरे से भी बीमार होना चाहिये
आप दरिया हैं तो फिर इस वक्त हम खतरे
में हैं
आप कश्ती हैं तो हमको पार होना चाहिये
ऐरे गैरे लोग भी पढ़ने लगे हैं इन
दिनों
आपको औरत नहीं अखबार होना चाहिये
जिंदगी कब तलक दर दर फिरायेगी हमें
टूटा फूटा ही सही घर बार होना चाहिये
अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी
दें मुझे
इश्क के हिस्से में भी इतवार होना
चाहिये
2.
मैं उसको छोड़ न पाया बुरी लतों की तरह
वो मेरे साथ है बचपन की आदतों की तरह
मुझे सँभालने वाला कहाँ से आएगा
मैं गिर रहा हूँ पुरानी इमारतों की तरह
हँसा-हँसा के रुलाती है रात-दिन दुनिया
सुलूक इसका है अय्याश औरतों की तरह
वफ़ा की राह मिलेगी, इसी
तमना में
भटक रही है मोहब्बत भी उम्मतों की तरह
मताए-दर्द-लूटी तो लुटी ये दिल भी कहीं
न डूब जाए गरीबों की उजरतों की तरह
खुदा करे कि उमीदों के हाथ पीले हों
अभी तलक तो गुज़ारी है इद्दतों की तरह
यहीं पे दफ़्न हैं मासूम चाहतें ‘राना’
हमारा दिल भी है बच्चों की तुरबतों की
तरह
3.
तुम्हारे शहर में मय्यत को सब कांधा
नहीं देते
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिलकर
उठाते हैं
4.
समझौतों की भीड़-भाड़ में सबसे रिश्ता
टूट गया
इतने घुटने टेके हमने, आख़िर
घुटना टूट गया
देख शिकारी तेरे कारण एक परिन्दा टूट गया,
पत्थर का तो कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन
शीशा टूट गया
घर का बोझ उठाने वाले बचपन की तक़दीर न
पूछ
बच्चा घर से काम पे निकला और खिलौना
टूट गया
किसको फ़ुर्सत इस दुनिया में ग़म की
कहानी पढ़ने की
सूनी कलाई देखके लेकिन, चूड़ी
वाला टूट गया
ये मंज़र भी देखे हमने इस दुनिया के
मेले में
टूटा-फूटा नाच रहा है, अच्छा
ख़ासा टूट गया
पेट की ख़ातिर फ़ुटपाथों पर बेच रहा
हूँ तस्वीरें
मैं क्या जानूँ रोज़ा है या मेरा रोज़ा
टूट गया
5.
ज़रूरत से अना का भारी पत्थर टूट जाता है
मगर फिर आदमी भी अन्दर -अन्दर टूट जाता
है
ख़ुदा के वास्ते इतना न मुझको टूटकर
चाहो
ज़्यादा भीख मिलने से गदागर टूट जाता
है
तुम्हारे शहर में रहने को तो रहते हैं
हम लेकिन
कभी हम टूट जाते हैं कभी घर टूट जाता
है
6.
लिबासे जिस्म पे इफ्लास की दीमक का
क़ब्ज़ा है
जो चेहरा चाँद जैसा था वहाँ चेचक का
क़ब्ज़ा है
ग़रीबों पर तो मौसम भी हुकूमत करते
रहते हैं
कभी बारिश कभी गर्मी कभी ठन्डक क़ब्ज़ा
है
7.
मुनव्वर में यक़ीनन कुछ न कुछ तो
ख़ुबीयाँ होंगी
ये दुनिया युँ ही उस पागल की दीवानी
नहीं होगी
8.
भरोसा
मत करो साँसों
की डोर टूट
जाती है ,
छतें
महफ़ूज़ रहती हैं
हवेली टूट जाती
है!
मोहब्बत भी अजब शै है वो
जब परदेस में
रोये ,
तो
फ़ौरन हाथ की
एक-आध चूड़ी टूट
जाती है!
कहीं
कोई कलाई एक
चूड़ी को तरसती
है,
कहीं
कंगन के झटके
से कलाई टूट
जाती है !
लड़कपन में किये वादे की क़ीमत कुछ
नहीं होती,
अँगूठी हाथ
में रहती है
मंगनी टूट जाती
है!
किसी
दिन प्यासे के बारे में उस से पूछिये जिस की,
कुएं
में बाल्टी रहती
है रस्सी टूट
जाती है !
कभी
एक गर्म आँसू
काट देता है
चट्टानों को ,
कभी
एक मोम के
टुकड़े से छैनी
टूट जाती है!
9.
बड़े बड़ों को बिगाड़ा है हम ने ऐ राना
हमारे लेहजे में उस्ताद शेर कहने लगे
10.
किसी भी ग़म के सहारे नहीं गुज़रती है
ये ज़िंदगी तो गुज़ारे नहीं गुज़रती है
कभी चराग़ तो देखो जुनूं की हालत में
हवा तो ख़ौफ़ के मारे नहीं गुज़रती है
नहीं-नहीं ये तुम्हारी नज़र का धोखा है
अना तो हाथ पसारे नहीं गुज़रती है
मेरी गली से गुज़रती है जब भी रुस्वाई
बग़ैर मुझको पुकारे नहीं गुज़रती है
मैं ज़िंदगी तो कहीं भी गुज़ार सकता
हूं
मगर बग़ैर तुम्हारे नहीं गुज़रती है
हमें तो भेजा गया है समंदरों के लिए
हमारी उम्र किनारे नहीं गुज़रती है
11.
वो जालिम मेरी हर ख्वाहिश ये कह कर टाल
जाता है
दिसंबर जनवरी में कोई नैनीताल जाता है
अभी तो बेवफाई का कोई मौसम नहीं आया
अभी से उड़ के क्यों ये रेशमी रूमाल
जाता है
वज़ारत के लिए हम दोस्तों का साथ मत
छोड़ो
इधर इक़बाल आता है उधर इक़बाल जाता है
मुनासिब है कि पहले तुम भी आदमखोर बन
जाओ
कहीं संसद में खाने कोई चावल दाल जाता
है
ये मेरे मुल्क का नक़्शा नहीं है एक
कासा है
इधर से जो गुज़रता है वो सिक्के डाल
जाता है
मोहब्बत रोज़ पत्थर से हमें इंसां
बनाती है
तआस्सुब रोज़ इन आंखों पे परदा डाल
जाता है
12.
छाँव मिल जाए तो कम दाम में बिक जाती
है
अब थकन थोड़े से आराम में बिक जाती है ।
आप क्या मुझ को नवाज़ेंगे जनाब ए आली,
सल्तनत तक मेरे ईनाम में बिक जाती है ।
13.
मैने रोते हुए पोछें थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा
अपना
14.
मियाँ रुसवाई दौलत के तआवुन से नहीं
जाती
यह कालिख उम्र भर रहती है साबुन से
नहीं जाती
शकर फ़िरकापरस्ती की तरह रहती है
नस्लों तक
ये बीमारी करेले और जामुन से नहीं जाती
वो सन्दल के बने कमरे में भी रहने लगा
लेकिन
महक मेरे लहू की उसके नाख़ुन से नहीं
जाती
इधर भी सारे अपने हैं उधर भी सारे अपने
थे
ख़बर भी जीत की भिजवाई अर्जुन से नहीं
जाती
मुहब्बत की कहानी मुख़्तसर होती तो है
लेकिन
कही मुझसे नहीं जाती सुनी उनसे नहीं
जाती
15.
सियासी आदमी की शक्ल तो प्यारी निकलती
है
मगर जब गुफ्तगू करता है चिंगारी निकलती
है
लबों पर मुस्कराहट दिल में बेजारी
निकलती है
बडे लोगों में ही अक्सर ये बीमारी
निकलती है
मोहब्बत को जबर्दस्ती तो लादा जा नहीं
सकता
कहीं खिडकी से मेरी जान अलमारी निकलती
है
16.
घरौंदे तोड़ कर साहिल से यूँ पानी
पलटता है
कि जैसे मुफ़लिसी से खेल कर ज़ानी
पलटता है
किसी को देखकर रोते हुए हँसना नहीं
अच्छा
ये वो आँसू हैं जिनसे तख़्त-ए-सुलतानी
पलटता है
कहीं हम सरफ़रोशों को सलाख़ें रोक सकती
हैं
कहो ज़िल्ले इलाही से कि ज़िन्दानी
पलटता है
सिपाही मोर्चे से उम्र भर पीछे नहीं
हटता
सियासतदाँ ज़बाँ दे कर बआसानी पलटता है
तुम्हारा ग़म लहू का एक-एक क़तरा
निचोड़ेगा
हमेशा सूद लेकर ही ये अफ़ग़ानी पलटता
है
17.
मुख़्तसर होते हुए भी ज़िन्दगी बढ़
जायेगी
माँ की ऑंखें चूम लीजै रौशनी बढ़
जायेगी
मौत का आना तो तय है मौत आयेगी मगर
आपके आने से थोड़ी ज़िन्दगी बढ़ जायेगी
इतनी चाहत से न देखा कीजिए महफ़िल में
आप
शहर वालों से हमारी दुशमनी बढ़ जायेगी
आपके हँसने से खतरा और भी बढ़ जायेगा
इस तरह तो और आँखों की नमी बढ़ जायेगी
बेवफ़ाई खेल है इसको नज़र अंदाज़ कर
तज़किरा करने से तो शरमिन्दगी बढ़
जायेगी
18.
थकी-मांदी हुई बेचारियाँ आराम करती हैं
न छेड़ो ज़ख़्म को बीमारियाँ आराम करती
हैं
सुलाकर अपने बच्चे को यही हर माँ समझती
है
कि उसकी गोद में किलकारियाँ आराम करती
हैं
किसी दिन ऎ समुन्दर झांक मेरे दिल के
सहरा में
न जाने कितनी ही तहदारियाँ आराम करती
हैं
अभी तक दिल में रोशन हैं तुम्हारी याद
के जुगनू
अभी इस राख में चिन्गारियाँ आराम करती
हैं
कहां रंगों की आमेज़िश की ज़हमत आप
करते हैं
लहू से खेलिये पिचकारियाँ आराम करती
हैं
19.
अच्छी से अच्छी आबो हवा के बग़ैर भी,
ज़िंदा हैं कितने लोग दवा के बग़ैर भी।
सांसों का कारोबार बदन की ज़रूरतें,
सब कुछ तो चल रहा है दुआ के बग़ैर भी।
बरसों से इस मकान में रहते हैं चंद लोग,
इक दूसरे के साथ वफ़ा के बग़ैर भी ।
हम बेकुसूर लोग भी दिलचस्प लोग हैं,
शर्मिन्दा हो रहे हैं ख़ता के बग़ैर
भी।
20.
वो जा रहा है घर से जनाज़ा बुज़ुर्ग का,
आँगन में एक दरख़्त पुराना नहीं रहा।
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